आज बहुत दिनों बाद
दिन की सुबह का मुँह देखा
सर्द हवायों से
कंपाने की कोशिश करती
जीवन का उत्साह
जताने की कोशिश करती
किसी शुरुआत का अर्थ
बताने की कोशिश करती
कुहासे से धुंधली पड़ी राहें
दिखाने की कोशिश करती
समझाती पुचकारती
कहती गुनगुनाती
उतार चढाव
समझाने की कोशिश करती
एक सुखद स्वप्न के साथ
बेहतर सुबह का मुँह देखा।
देखा
जीवन का एक और रूप देखा
सुबह के साथ ही
पेट की चिंता करता हुआ
सर्द हवाओं से
लड़ने की हिम्मत करता हुआ
और उससे अधिक
और उससे तेज
और उससे दर्दनाक
अपने ही चुने हुए लोगों के
स्वार्थ से मरता हुआ
असम तरीके से
असमय बढती हुयी
मंहगाई से डरता हुआ
आज फिर
उसकी सुबह का
चिरभूखा निष्ठुर मुंह देखा
फिर आंखे बंद कर
एक सुखद स्वप्न के साथ,
उसकी बेहतर सुबह का मुँह देखा।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुती,प्रशंसायोग्य ही लेखनी।
ReplyDeleteजिंदगी का एक सच ऐसा भी ...
ReplyDelete