Wednesday, February 27, 2013

बताओ न Batao na

फ़ोन में एक नंबर है ...
जिसे रोज देखता हूँ ...
उँगलियाँ उचकती हैं ...
पता नहीं क्या करने को ... फ़ोन में ही ...
फिर ...
न जाने क्या सोच कर ...
अटक जाती हैं ...
तभी कुछ बूँदें ...
कहीं से टपक जातीं हैं ...

तुम्हे तो पता ही होगा ...
बताओ न ...
क्या सोचती होंगीं ...
उगलियाँ और वो बूँदें ...

मुझे डर है ...
मेरे कमजोर होने की ...
नुमाइश तो नहीं ...
मेरे दिल की ...
ये साजिश तो नहीं ...
बताओ न ...

No comments:

Post a Comment

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

Featured Post

मैं खता हूँ Main Khata Hun

मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ   इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...