मैं ढूंढ़ रहा
था एक रुबाई,
मिली मगर वो थी तन्हाई।
सपनों के पीछे दौड़ा था,
नींद खुली जब ठोकर खाई।
अंधेरों से लड़ने की जिद में,
हाथ जला बुझ गयी सलाई।
खुश होकर घर से निकला,
भूख मगर पड़ गयी दिखाई।
सुलग उठेगा उनका मन भी,
पेट की आग न गयी बुझाई।
जिन्दा लाशों सा जीवन है,
इंसानों की दुनिया मुरझाई।
दामादों की खातिरदारी में,
लूट-लूट कर भरी कमाई।
भूखे गूंगों की चीखें भी,
निकलीं पर न गयी सुनाई।
इटालियन खद्दर की सोहबत से,
मर रहा देश है बिना रजाई।
चलता रहा सुकूँ पाने
को,
पैरों में फट गयी बिबाई।
मैं ढूंढ़ रहा था एक
रुबाई,
मिली मगर वो थी तन्हाई।
Neeraj ji, kai wishayon ko ek sath piro sundar rachanaa banaa diya hai, aapne. achchhii lagi .
ReplyDeleteMeenakshi Srivastava
meenugj81@gmail.com
बहुत सुन्दर!
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