सीने में शोले हैं बह जाये बूँद पर बूँद,
खाने को न हो रोटी पर मरता नहीं जुनून,
श्वेत कफ़न सी सरहद
पर आँखों में,
रक्तिम आंसू ले कहता शहीद का खून,
भारत के दो शेरों की निर्मम हत्याओं पर,
कायर नपुंसक दरबारों की हीलाहवाली है,
गन्दी दागी खद्दर की हिफाजत में हरदम,
तैनात सारी बंदूकों
के मुँह पर गाली है।
ये गाली है मेरे भारत पर भारतवालों पर,
भारत के अब तक जीवित मतवालों पर,
बस भीख मांगना मात्र शेष रह गया आज,
अनशन करना ही राष्ट्रधर्म बन गया आज,
किसने सिखलाई ये
हक पाने की भाषा,
कितनी कायर है ये राष्ट्रधर्म की परिभाषा,
छत्रपति वीर शिवा के हाथों में तलवारें थीं,
मेरे झाँसी की रानी के हाथों में कटारें थीं।
फिर किसने कहा
कि अपना हक अब,
चौराहों पर झोली फैलाकर मिलता
है,
किसने कहा न्याय भारत
में केवल,
आज मोमबत्तियां जलाकर
मिलता है,
छोड़ो भारत वालों अब अनशन छोड़ो,
अपनी झूंठी कायरता का मंचन छोडो,
अपने वीरोचित कर्तव्यों
को याद करो,
इन अंधे बहरे गूंगों का अभिनन्दन छोड़ो।
बन जाओ कृष्ण बजाओ पाञ्चजन्य फिर से,
हे अर्जुन अपना गाण्डीव उठाओ फिर से,
मेरी कविता का आवेग
निरंतर प्रेषित है,
तुम भारत के सुभाष बन
जाओ फिर से।
behtreen aur sarthak abhivaykti....
ReplyDeletebahut khub
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