आज वक्त केवल चीथड़ा पहने हुए है क्यों,
कवि के शब्द आज फिर सहमें हुए है क्यों?
हमारे दिलों में इतना तो घुप्प अँधेरा न
था,
घर की इज्जत पर शैतानों का पहरा न था,
खाकी वाले केवल डंडे
पटकते रहे और हम,
मोमबत्ती ले अब तक भटकते रहे हैं क्यों?
इंसानियत लुटती रही हो रोज ही दरबार में,
मंत्रिपद बंटता रहा हो चोर को सरकार में,
खद्दर वाले मिल बाँट कर खाते रहे और हम,
आज तक बस मांग ही
करते रहे हैं क्यों?
सत्ता मिलते ही
हाथों में खञ्जर आ गए हैं,
कुछ धमाकों की जरुरत के दिन आ गए हैं,
वो विदेशी मेरा भारत कुचलते रहे और हम,
दिल्ली में शांतिपाठ
ही करते रहे हैं क्यों?
बह गयी एक एक बूँद जब दर्द की आह की,
हो गयी बंजर जमीं भी सूखकर विश्वास की,
वो बिलखते देश पर डंडे चलाते रहे और हम,
अपंग नेतृत्व पर विश्वास ही करते रहे हैं क्यों?
देखिये फिर आसमानों की क़यामत देखिये,
कुछ अपाहिज जुगनुओं की हिमाकत देखिये,
हमें मिटाने की साजिश करते रहे और हम,
हमेशा तथाकथित सेकुलर बनते रहे हैं क्यों?
हमेशा नपुंसक कायर गीदड़ बनते रहे हैं क्यों?
आज वक्त केवल चीथड़ा पहने हुए है क्यों,
कवि के शब्द आज फिर सहमें हुए है क्यों?
मोमबत्ती ले अब तक भटकते रहे हैं क्यों?
दिल्ली में शांतिपाठ ही करते रहे हैं क्यों?
आज तक बस मांग ही करते रहे हैं क्यों?
हर भारतवासी को हर क्यों का जवाब अपने अन्दर ढूँढना चाहिए निष्पक्ष होकर, ,जाति,धर्म से ऊपर उठकर .;
ReplyDelete"काश ! हम सभ्य न होते " http://kpk-vichar.blogspot.in में आपका स्वागत है.
खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
ReplyDeleteहर क्यों का जवाब मिल जाता तो जिंदगी आसन हो जाती
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