Tuesday, January 22, 2013

बादलों जी भर बरस लो Badlon Jee Bhar Bras Lo

इस बार, ये बादलों जी भर बरस लो ..

है मुझे है याद आती,
आह को बूंदे बनाती,
काल भी जब हारकर,
घाव सूखा जानकर,
साँस लेता हो सुकूँ की,
याद आ जाने कहाँ से,
घाव मेरे छेड़ जाती,
रूह कहती फिर तड़प कर
इस बार, ये बादलों जी भर बरस लो ..

वह छुअन एहसास,
संयोग का परिहास,
स्वप्निल सत्य के,
चंहुओर विकसित,
भोग का सन्यास,
फिर कभी चंचल हवा,
तार कोई छेड़ जाती,
रूह कहती फिर तड़प कर
इस बार, ये बादलों जी भर बरस लो ..

फिर कभी न याद आना,
तोड़कर फिर न बनाना,
रेत से कोई महल,
स्वर्ण मंदिर से निकल,
लहर आकर मेट देगी,
पीर आँखों में अपरिमित,
देख कर विश्राम करती,
रूह कहती फिर तड़प कर
इस बार, ये बादलों जी भर बरस लो ..

4 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (23-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |
    सूचनार्थ |

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  2. बढ़ि‍या...मगर भड़क कर शब्‍द के बदले कुछ और प्रयोग कि‍या होता तो ज्‍यादा प्रभावी होता

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  3. सुधार के लिए बहुत आभार रश्मि जी, आलोचना किसी भी प्रकार की हो मेरे लिए स्वागतयोग्य है. सभी का ह्रदय से आभार उत्साहवर्धन करने के लिए.

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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