Tuesday, July 24, 2012

पानी बना बहता रहूँगा Pani Bana Bahta Rahunga


चमचमाती रोशनी देखी है, जिसने ख्वाब में बस,
मैं उन्हीं की  आँख का, पानी बना बहता रहूँगा।

जिसने स्वेद और रक्त में, अंतर नहीं जाना कभी,
मैं उन्हीं का शक्ति पूजन, भक्त बन करता रहूँगा।

जिसने बो दिये हो बीज, लड़ झगड़ बंजर जमीं में,
मैं उन्हीं की श्रमिकता का, गान  बन गूँजा करूंगा।

शब्द जिनके चाशनी, दिल गुलाबों से भरा हो,
मैं उन्हीं का साथ लेकर सबके दिल जीता करूंगा।

सो कर गगन की छांव में, अट्टालिका बुनते रहे हैं,
मैं उन्हीं  हाथों के रूठे, भाग्य से  लड़ता  रहूँगा

चुन गए जो नींव में, गुमनाम से बलिदान होकर,
मैं उन्हीं  के नाम, सर्वोपरि समझ  पूजा करूंगा।

Monday, July 23, 2012

कहीं मर न जाए Kahin Mar Na Jaye


बुन सकता हूँ,
रंग बिरंगे स्वप्न रेशमी धागों से,
पर डरता हूँ,
कहीं ये रंगीन स्वप्न बस जाएँ,
किसी गरीब की आँखों में,
और फिर,
मर जाए उनके जिंदा रहने की भी,
संभावना।

चुन सकता हूँ,
कुछ शुद्ध तत्सम शब्द,
शब्दकोश से,
पर डरता हूँ,
कहीं तुम्हारे हृदय तक पहुँचने से पहले,
मर जाए मेरी,
भावना।

Wednesday, July 11, 2012

माँ, इसमें मेरा दोष न देख Man Ismein Mera Dosh N dekh


रस्म रिवाजों के चन्दन में,
देहरी के  पावन  बंधन में,
बंधी रही हूँ बिना शिकायत,
पावन  सी   तेरे  कंगन  में,
अरुणोदय की प्रथम किरण सी विस्मित कर जाती वो रेख,
समय की चाहत  बड़ी बुरी है,  माँ इसमें मेरा दोष न देख

मैंने  कब  चाहा   उड़ जाऊं,
मनमाने  ढंग   से  इठलाऊं,
मानापमान को छिन्न भिन्न,
करके पल भर को जी जाऊं,
काई भरी डगर  है जीवन, फिसलन भरा उमर का सावन,
मैं इन राहों पर फिसल गयी, माँ इसमें मेरा दोष न देख

सपनों  को दूँ  पंख मगर,
भले  बुरे की  छोड़ नजर,
मैंने  कब  चाहा  मैं पाऊं,
वो सब कुछ जो मैंने चाहा,
मैं नदिया बनने को निकली, मगर रह गयी छोटा पोखर,
बांधों ने मुझको  बांध लिया, माँ इसमें मेरा दोष न देख

चंचलता  मेरी आंगन तक,
स्वप्न संसार विछावन तक,
मैं नीर  भरी  बदली  तेरी,
दौड़ी सागर से हिमगिरी तक,
फिर देख डगर प्यासे नैना, रुक न सकी मैं सावन तक,
संगत बुरी  हवाओं की थी, माँ इसमें मेरा दोष न देख

भावों का  आवाहन पाकर,
मैंने देहरी  पार न की थी,
जीवन  की चतुराई  देखो,
गिरने की नौबत भीतर थी,
गलती की इन्सान  रह गयी, अन्तर मेरे रार ठन गयी,
टूट गयी ये हया मिलन से, माँ इसमें मेरा दोष न देख

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