Monday, January 2, 2012

तलाश: वक्त की तलाश


तलाश
वक्त की तलाश,
उमड़ते घुमड़ते सजल बादलों के संग,
चहुँ ओर बिखरा उज्जवल भगवा रंग,
भानु की अनुपम छटा बिखरी गगन में,
या नवक्रांति की पताका फहरती पवन में,
दूर से अविराम आती पाँञ्चजन्य ध्वनि,
अधूरी नींद से जगकर तत्पर कर्ममुनि,
मैं आज निकला हूँ किसी की तलाश में,
काश मिल जाये फिर से कोई क्रांतिवीर,
भविष्य के स्वर्णिम वक्त के लिबास में
मैं आज फिर निकला हूँ

Sunday, January 1, 2012

अस्तित्व एक बूंद का: स्वेद

स्वेद क्या है?
एक खारी बूँद, जल की
एक आर्द आह, पवन की
एक शांत वेवेचना, श्रम की

स्वेद क्या है?
एक सुखद पुकार, तन की
एक शीतल हार, ऊष्म की
एक दृष्टा, श्रमिक लगन की
एक झलक, आतुर व्यथित जन की

स्वेद एक, रंग एक, स्वाद एक
और एक मूर्ति, संजोये श्रम अनेक
मौन भाषा और व्याकरण के
संग प्रस्तुत कथा तन की

स्वेद क्या है? ये है स्वेद का अस्तित्व

यदि स्वेद न हों?
यदि हो जायें स्वेद अस्तित्वहीन?

ऊष्मा घुल जाये, तन में
मौन हो जाये श्रम, श्रमिक में
जिव्हा कब तक गवाही दे, यदि
दिखे न एक भी श्रमित बूँद तन पे

यदि फिर भी जीवित रहें वर्जनाएं मालिकों की
तो क्या हो जाये श्रमिक मृतप्राय
श्रम करते करते,
तोड़ दे बर्जनाएं शरीरों की
भावहीन मालिकों को
खुश करते करते

तब कैसे होगी शीतल देह अकल्पित
श्रम धारण करते करते
तब कैसे खाली होगा मेघ अकल्पित
जल भीतर रखते रखते
यदि हो जायें स्वेद अस्तित्वहीन?

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