Saturday, December 22, 2012

तकिया भिगोना छोड़ दो Takiya Bhigona Chod Do


ऐ आसमानों की निगाहें तुम बहकना छोड़ दो,
बादलों के बोझ से, जब तब बरसना छोड़ दो।

उम्र भर जीना, कहाँ मुश्किल रहा है अब तेरा,
अब किसी की याद में बेबस तरसना छोड़ दो।

ऐ पतंगे इस शमां को, हो गयी है बदगुमानी,
तुम ही जरा एक फूंक से बदगुमानी तोड़ दो।

चाहे हो भले टूटा हुआ, पास तेरे दिल तो है,
पत्थरों के  मालिको से, जी लगाना छोड़ दो।

याद की कोई  महक, मदहोश करती हो अगर,
याद रहती हो जिधर जाहिल हवा को मोड़ दो।

हाँ उस दिन, एक शीशा टूटकर बिखरा जरुर,
बटोर लो अब, रास्ते खूं से भिगोना छोड़ दो।

उम्र भर बुनते  रहोगे, स्वप्न की कुछ कतरनें,
तुम आज से रात में तकिया भिगोना छोड़ दो।

3 comments:

  1. दिल के किसी कोने में बस गई आपकी ये लेखनी ...बहुत खूब


    उम्र भर जीना, कहाँ मुश्किल रहा है अब तेरा,
    अब किसी की याद में बेबस तरशना छोड़ दो।............वाह

    तरशना*...तरसना

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  2. सुधार के लिए बहुत बहुत आभार अनू जी.

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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