उस चोट ने मुझे शायद
बडा कर दिया है,
फिर एक ठोकर लगाकर खडा
कर दिया है।
अनजाने अनचाहे किसी
एक अपने ने,
मट मैले सुर्ख रंगों सा रंग मेरा कर दिया है।
न जाने कैसी बारिश थी जिसने भरा तो है,
धीरे धीरे से मुझको
अधूरा कर दिया है।
कुछ चंद लम्हों ने ख़ुशी ख़ुशी पाला जरूर,
फिर झटके से थोडा
अधमरा कर दिया है।
रंगों की बादशाहत कायम करने की जिद में
फलक पे दो राहियों ने झगडा कर दिया है।
ये राहें किसी की तो मनमीत
होंगी मगर,
मेरे कदमों को ढोने
से मना कर दिया है।
अजब से रात दिन कुछ तो बदला हुआ है,
मीठी बूँद से खारे पानी का घडा कर दिया है।
न जाने कैसी बारिश थी जिसने भरा तो है,
ReplyDeleteधीरे धीरे से मुझको अधूरा कर दिया है।
गहन और सुंदर रचना ...
शुभकामनायें ।
वाह बहुत खूब
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