Wednesday, December 5, 2012

खारे पानी का घडा Khare Pani Ka Ghada


उस चोट ने  मुझे  शायद बडा कर दिया है,
फिर एक ठोकर लगाकर  खडा कर दिया है।

अनजाने  अनचाहे  किसी  एक  अपने  ने,
मट मैले सुर्ख रंगों सा रंग मेरा कर दिया है।

न जाने कैसी बारिश थी जिसने भरा तो है,
धीरे धीरे से  मुझको अधूरा  कर दिया है।

कुछ चंद लम्हों ने ख़ुशी ख़ुशी  पाला जरूर,
फिर झटके से  थोडा अधमरा कर दिया है।

रंगों की बादशाहत कायम करने की जिद में
फलक पे दो राहियों ने झगडा कर दिया है।

ये राहें किसी  की तो  मनमीत होंगी मगर,
मेरे कदमों को  ढोने से  मना कर दिया है।

अजब से रात दिन  कुछ तो बदला हुआ है,
मीठी बूँद से खारे पानी का घडा कर दिया है।

2 comments:

  1. न जाने कैसी बारिश थी जिसने भरा तो है,
    धीरे धीरे से मुझको अधूरा कर दिया है।
    गहन और सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें ।

    ReplyDelete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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