आखिर कब तक उगते भारत को अंधा इतिहास पढ़ाओगे?
कब तक बचपन में कायरता
भर खद्दर के दिए जलाओगे?
कब तक प्रश्न पूँछते नौनिहाल के सम्मुख गूंगे बन जाओगे,
तुम इस चन्दन को गन्दी माटी कह कैसे अबोध कहलाओगे?
जब सतरंगी पर्दे उठा उठा बचपन जानेगा खद्दर की सच्चाई,
कि अब तक गुमनाम किये गए सुभाष को मौत नहीं आई,
क्या बोलोगे उस दिन जिस
दिन होंगे रूखे सूखे प्रश्न यही,
तब जिनका उत्तर देने
को तुमको मिलता था वक्त नहीं,
क्या किया तुम्ही ने उस दिन जब धरती ने
तुम्हे पुकारा था?
जब चंद जोंक से लोगों ने भारत माँ को
कमजोर बनाया था,
तब किन शब्दों की बैशाखी लेकर अपनी मूँछ बचाओगे?
उस दिन उन तीनों में से किस बन्दर की शरण में जाओगे?
जब प्रश्न करेगा एक किशोर क्यों सच तुमने न बतलाया,
क्यों इतिहासों की स्याही में वीरों का
रक्तिम वर्ण नहीं आया,
तब प्रश्नों के बाण चलेंगे क्यों जलियावाला में निर्दोष मरे?
कुछ बुरे भले कुछ सही
गलत और कुछ तीखे व्यंग्य भरे,
जब भारत की कड़वी सच्चाई अपने बचपन की
आँखें खोलेगी,
प्रश्न चिन्ह लिए बचपन के माथे की भृकुटी
जरा तनी होगी,
अपने रक्त के सम्मुख ही तब तुम किस मुँह से आओगे,
तब मुख से शब्द नहीं
फूटेंगे फिर हर पल मरते जाओगे।
तुम कायर हो जब वो जानेगा अपना सर कहाँ छिपाओगे?
तब बचपन के सम्मुख पचपन में ही कटघरे बुलाये जाओगे।
लीपा पोती किये हुए सच को गाली दिए हुए
सतरंगी पन्नों पर,
रक्तिम सच से रंगे हुए इतिहासों के पन्ने कहाँ से लाओगे?
आखिर कब तक उगते भारत को अंधा इतिहास पढ़ाओगे?
कब तक बचपन में कायरता
भर खद्दर के दिए जलाओगे?
कब तक प्रश्न पूँछते नौनिहाल के सम्मुख गूंगे बन जाओगे,
तुम इस चन्दन को गन्दी माटी कह कैसे अबोध कहलाओगे?
सत्य वचन
ReplyDeleteबहुत सही बात ..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है
ReplyDeleteक्या बात है ...अच्छी अभिव्यक्ति..भाव व विचार ....कुछ कला-पक्ष भी सशक्त करें...
ReplyDeleteभूगोल किया खंडित जिसने,मानवता से भी द्रोह किया ,उस रक्त-बीज
ReplyDeleteसे कब तक तुम संबंध निभाओगे ?
सार्थक रचना .... विचारणीय प्रश्न
ReplyDelete