जरूरतें आसमानों को
मजबूर कर सकती हैं बिजली बरसानें को
तो इंसान को क्यों नहीं?
डरो
जरुरत से
डरो दरबारों,
आज जरुरत
यहाँ दिल्ली
में नाच रही है,
जरुरत की बिजलियाँ
पानी की
बौछारों,
आंसू गैस के
गोलों और
तुम्हारी
खोखली लाठियों से
नहीं शांत
होने वाली।
दरबारों
आज तक तुम हो,
क्योकि शायद कहीं न कहीं,
तुम्हारी जरुरत थी।
जब भी लगेगा इन्हें कि
तुम्हारा होना न होना बराबर है,
उस दिन,
तुम्हारा अस्तित्व कही नहीं रहेगा।
23-12-2012
आज का शाश्वत सच
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