Tuesday, November 6, 2012

पिता: एक आकाश Pita: A Sky


कुछ सर्द लम्हों  की किताबें, जिन्दगी  गाती रही,
उसके बाल भी पकते रहे और  झुर्रियां चढती रही।

फ़िर चाहे रात दिन  खटता रहा हो  बाप फ़िर भी,
उसकी भावना हर कदम केवल अवहेलना पाती रही।

उसने स्वप्न अपने तुम्हारी नींव में दफ़ना दिये हैं,
ज्यों ज्यों उठते गये हो तुम उसकी कद्र घटती रही।

उसकी बढती रही हो  उम्र चाहे उम्र भर  फ़िर भी,
हर दिवस उसकी उम्र से  बस जिन्दगी घटती रही।

अपनी पी गया वो ख्वाहइशें दाल रोटी में मिलाकर,
पर तुम्हारी जेब में चाकलेटों की मिठास बढती रही।

बैल सा कोल्हू में जुत तपकर नापता रहता जमीं वो,
हर पल तुम्हारी जीत को कदमों की धरा बढती रही।

वो अर्थ लेकर जिन्दगी के  तुम्हारी चोंच में देता रहा,
हर दिन हर रात हर ठौर सर पे छत तेरी बढती रही।

अब आसमानों ने भले ही अर्थ अनगिन गढ लिये हों,
पर पिता इस शब्द से ही, दुनिया आसमां बुनती रही।

5 comments:

  1. बहुत प्यारी कविता ....

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  2. neeraj brother yadi apni pita ko dekhun tau abhi kam likha hai tumne...pita dard bhi jhelta hai par bachchon se bayaan nahin karta....apmaan jhelta hai.....tab jaake kahin use mahine ke aakhir main tankhawah milti hai....hum raat ko ghar se nikalne main darte hain...pita..kya din kya raat bas bachchon ka bhavishya hi unhe dikhta hai....in par bhi kuch likho bro..

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  3. DI ... fir kisi din ise age aur bhi badhane ki koshish karunga. Apki bhavna bhi pirone ki koshish karunga.

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  4. मेरी आँखों में पापा के लिए श्रद्धांजलि के आँसू हैं और ह्रदय में उनकी बेटी, उनका अंश होने का गर्व|

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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