ये लम्हें तोड देते हैं, कभी ये जोड देते हैं,
बेहद शख्त जान हूँ, जो जिन्दा छोड देते हैं।
लम्हें सब्ज सुर्ख रंगी, कटारों से कतर कर,
रंगीन पंख सपनों के, हवा में छोड देते हैं।
लम्हें देखकर गमगीन, फ़रियाद दुनिया की,
जेहन में बहुत गहरे से, खङ्जर भोंक देते हैं।
लम्हें तोडकर दिल, फ़िर सिलकर करीने से,
जमाने की तडप भर,जिन्दगी झकझोर देते हैं।
लम्हें खुदगर्ज टुकडे, वक्त की रूखी डगर
के,
एक पल हंसा, एक बूँद आँख से, रोल देते हैँ।
लम्हें गीले आसमानों को भिगोकर फ़िजाओं में
हंसकर जीने का नशा, जेहन में घोल देते हैं।
लम्हें डूबते इन्सान को, रूठते भगवान
को,
एक तिनके सा महज प्यार के दो बोल देते हैं।
लम्हें रीत दुनिया की, अधूरी प्रीत दुनिया
की,
एक बच्चे की हँसी सा, निर्दोष मोड देते
हैं।
लम्हें आखिरी पल, चिर शन्ति का बरदान दे,
मटमैले शून्य को फिर, शून्य से जोड देते हैं।
आपके इस प्रविष्टी की चर्चा बुधवार (21-11-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति . बधाई इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा
ReplyDeleteशब्दों की जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी..कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने.बहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने...बहुत खूब.आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.