अब जग रही है रात
बादल की उमर को ताक में रख,
न जाने कब से,
हो रही बरसात,
हो रही बरसात सपनों की अपाहिज।
अब जग रही है रात।
ओढ़ कर खद्दर कफ़न सा,
नींद में ही मर रही है,
निर्धन अश्रुपूरित आस,
अश्रुपूरित आस उत्सुक भारत की।
अब जग रही है रात।
विक्षिप्त सुप्त चिंतन लेकर,
किस दिशा ले जा रहा है,
राष्ट्र को समय का आवर्त,
समय का आवर्त चक्रव्यूह सा।
अब जग रही है रात।
मिल रही विषदंश की सौगात,
पटेलों ने हुकूमत से,
जब ले लिया सन्यास,
ले लिया सन्यास सिंहों ने।
अब जग रही है रात।
No comments:
Post a Comment
प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --