Monday, July 9, 2012

प्यास बुझ ही तो जाएगी Pyas Bujh hi to Jayegi

कई आंखें,
देख रहीं हैं,
आकाश में बिखरी उदासी,
छोटा सा बादल,
और धरती का उत्सुक चेहरा
एक जलती बुझती आशा,
परिवर्तन की जिज्ञासा,
कुछ तत्पर ऋतुएँ,
उन पर खद्दर की तेज हवा का पहरा
करोड़ों छोटे छोटे,
सपनों का बोझ,
सोच रहा हूँ,
फेंक दूँ यहीं,
और आगे बढ़ जाऊं,
उदासीन निर्लिप्त सा,
आखिर क्या होगा?
मर ही तो जायेंगे,
वो बेजुबान,
अपने सपनों के मर जाने पर
फिर सोचा,
कुछ दिन और सही,
शायद बदल रही हैं हवायें,
अरे वो काले बदलते चेहरे,
बरस क्यों नहीं जाते?
मरियल सी ख़ामोशी के बीच,
आकर पिघल क्यों नहीं जाते?
आखिर क्या होगा?
इन भूखे प्यासे लोगों का,
बुझ ही तो जाएगी,
प्यास
तुमसे या फिर मौत से,
बुझ ही तो जाएगी,
प्यास

2 comments:

  1. वाह ... बहुत खूब.. .बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति है!

    आज का आगरा

    ReplyDelete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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