Tuesday, July 24, 2012

पानी बना बहता रहूँगा Pani Bana Bahta Rahunga


चमचमाती रोशनी देखी है, जिसने ख्वाब में बस,
मैं उन्हीं की  आँख का, पानी बना बहता रहूँगा।

जिसने स्वेद और रक्त में, अंतर नहीं जाना कभी,
मैं उन्हीं का शक्ति पूजन, भक्त बन करता रहूँगा।

जिसने बो दिये हो बीज, लड़ झगड़ बंजर जमीं में,
मैं उन्हीं की श्रमिकता का, गान  बन गूँजा करूंगा।

शब्द जिनके चाशनी, दिल गुलाबों से भरा हो,
मैं उन्हीं का साथ लेकर सबके दिल जीता करूंगा।

सो कर गगन की छांव में, अट्टालिका बुनते रहे हैं,
मैं उन्हीं  हाथों के रूठे, भाग्य से  लड़ता  रहूँगा

चुन गए जो नींव में, गुमनाम से बलिदान होकर,
मैं उन्हीं  के नाम, सर्वोपरि समझ  पूजा करूंगा।

4 comments:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।

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  2. अत्युत्तम भावों से समन्वित रचना... किन्तु मुझे तो आलोचना करने का निर्देश है तो
    (१) विचार :- जिनके प्रति श्रद्धा है उनकी केवल पूजा से उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला , या तो उनके हित में कुछ किया जाए, या उनके आदर्शों पर चला जाए, तभी शायद उन्हें कुछ तोष हो...
    (२) पहला शेर बाकी शेरों से बहुत कमजोर हैं .. इसलिए इसे बीच में रखेंगे तो बेहतर होगा .. प्रारंभ और अंत जितने ज्यादा सुन्दर होंगे , उतना प्रभाव ज्यादा होगा.
    (३) " सो कर गगन की छांव में, अट्टालिका बुनते रहे हैं,
    मैं उन्हीं हाथों की गांठों, के भाग्य से लड़ता रहूँगा।.".. ..
    ......इसमें दूसरी पंक्ति में लय-भंग हो रही है.......पंक्ति अपने मीटर में नहीं है .
    "मैं उन्ही हाथों की चोटों पर पर दावा मलता रहूँगा " ... इसमें शायद आपका भाव पूरा नहीं आ सका किन्तु लय-भंग भी नहीं है......
    ऐसा अन्य प्रयत्न आप आसानी से कर सकते हैं ।.........सादर

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  3. Bahut Abhar Ravikar Ji.

    Kishore Ji, Bahut Bahut Abhar. Asha hai age bhi alochna milti rahegi.

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  4. चमचमाती रोशनी देखी है, जिसने ख्वाब में बस,
    मैं उन्हीं की आँख का, पानी बना बहता रहूँगा।

    मुझे तो यह पंक्ति सबसे अच्छी लगी :))
    आभार आपका !

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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