Monday, July 23, 2012

कहीं मर न जाए Kahin Mar Na Jaye


बुन सकता हूँ,
रंग बिरंगे स्वप्न रेशमी धागों से,
पर डरता हूँ,
कहीं ये रंगीन स्वप्न बस जाएँ,
किसी गरीब की आँखों में,
और फिर,
मर जाए उनके जिंदा रहने की भी,
संभावना।

चुन सकता हूँ,
कुछ शुद्ध तत्सम शब्द,
शब्दकोश से,
पर डरता हूँ,
कहीं तुम्हारे हृदय तक पहुँचने से पहले,
मर जाए मेरी,
भावना।

2 comments:

  1. भावो का सुन्दर समायोजन......

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  2. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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