Tuesday, July 3, 2012

भारत भोला है Bharat Bhola hai

ये मिली नहीं है चुन  ली है,  मैंने तन्हाई जीवन में,
फिर  मैंने ही  राजमहल का, पथ  छोड़ा तरुणाई में,
मैं कागज का  लिए सहारा, निकला आग लगाने को,
भारत भोला है, पर उठता है, गद्दारों तुम्हे मिटाने को।

कई रंग  हैं  इस  माटी के,
याद  तुम्हे  हल्दीघाटी  के,
बहुत स्वप्न हैं इन आँखों में,
भारत की चोटिल शाखों में,
इस धरती  के अश्रु भले ही,
तुमको  ना दिख  पाते हों,
खद्दर का कवच बनाकर वो,
भारत को  मूर्ख  बनाते हों,
अब शब्दों के  वाण लिए, उतरा  हूँ तुम्हे दिखाने को,
भारत भोला है, पर उठता है, गद्दारों तुम्हे मिटाने को।

कब तक आँखों के सम्मुख,
माँ का  चिल्लाना  देखोगे?
कब तक उगते नौनिहाल का,
जीवित मर  जाना देखोगे?
जो छाती  में  भोंके ख़ंजर,
उसका बच  जाना  देखोगे?
कब तक निरपराध लोगों का,
बम से  उड़ जाना  देखोगे?
अब कलम लिए हूँ इसको ही, अपना हथियार बनाने को,
भारत भोला है, पर उठता है, गद्दारों  तुम्हे मिटाने को।

उन कायर  फट्टू लोगों से,
कह देना अब बच के रहना,
निकल रहे हैं कुछ दीवाने,
रंग बसंती जिनका गहना,
वो छाती  में  अंगारे भर,
सपनों  को रंग  चढ़ाएंगे,
भारत को भारत होने का,
फिर से एहसास दिलाएंगे,
अब जाग रहा है युवा देश का, मरने को मिट जाने को,
भारत भोला है, पर उठता है, गद्दारों  तुम्हे मिटाने को।

अब भारत का मोल नहीं,
हम सिक्कों  से होने देंगे,
अब हिमगिरी को गंगा को,
हम और  नहीं रोने देंगे,
पूंजीवादी सम अर्थव्यवस्था,
हम भेंट करेंगे सागर को,
भगत के प्रजातंत्र के जिम्मे,
हम सौंप चलेंगे भारत को,
फिर धरती को हाथ जोड़, प्राणों का अर्घ्य चढ़ाएंगे,
कदम बढे हैं आतुर हो, अब  हम कर्तव्य निभाएंगे,
हम फिर भारत का अंश लिए, आएँगे धरा सजाने को,
भारत भोला है, पर उठता है, गद्दारों तुम्हे मिटाने को।

No comments:

Post a Comment

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

Featured Post

मैं खता हूँ Main Khata Hun

मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ   इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...