Saturday, June 16, 2012

सूखी आँखें Sookhi Ankhein


सपने टूटे, फिर बिखर गए,
आँसू  जेहन में,  ठहर गए,
कुछ गिरे मगर नाकाफी थे,
जो गिरे न जाने किधर गए?

खुशियाँ बीमार मिलीं मुझको,
जो कुछ चाहा सब उधर गए,
जब आँखों में पानी रहा नहीं,
तो हम भी शायद सुधर गए।

कल एक  हक़ीक़त है, होगा,
पर तुम  होगे, ये पता नहीं,
वो ख्वाब  तेरा था, जो टूटा,
ये उसकी तो कोई खता नहीं।

हमने पाले  दो चार भरम,
कुछ शब्द बुने कुछ कह पाया,
पर अश्रु पिरोने की हिम्मत,
उसने की मुझको अता नहीं।

ये अँधियारा क्या होता है?
विक्षिप्त  निराशा से पूंछों,
पतवार  रहित नौका वाले,
नाविक की आशा से पूंछों।

दो शब्द  सहारा देने को,
निकल न पाएँ जिस मुख से,
तुम मजबूरी  की  परिभाषा,
उस विवश विचारे से पूंछों।

दुख का कोई छोर नहीं और,
ओर  नहीं, ये  पता मुझे,
समझदार  कहलाते हैं हम,
बस कर अब, न सता मुझे।

मैं मरने को  तैयार मगर,
मरने से ही  डर लगता है,
मरने वाले  का पता नहीं,
जीवित  हर पल मरता है।

उनको  कैसे आँसू दे जाऊँ,
जिनका कोई अपराध न हो,
उन्हें कैसे विरत करूँ खुद से,
बस इतना सा डर लगता है।

1 comment:

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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