Thursday, June 14, 2012

जब धरती की किस्मत आँसू हो


प्यार मोहब्बत कौन करेजब माँ घायल दिख जाती है,
धरती की किस्मत आँसू हो, तो रूह पागल हो जाती है।

मिट्टी जिसने  चन्दन  बनकर, तुझको  खूब संवारा हो,
उसकी आँखों में नमी देख, पुतली रक्तिम हो जाती है।

जब मौसम  की सर्द  निगाहें, तूफानों  के  लायक  हों,
हम आते हैं  पूजन को, माटी शोणित से सज जाती है।

दागी खाकी और खद्दर से, अब हमें  बचाना भारत को,
इनकी हर हरकत  सीने में, गहरा  गड्ढा कर जाती है

सतरंगी वादों से जनता को, स्वप्न  दिखाना बहुत हुआ,
रंगीं इश्तहारों से  दीवारों  की, दरार  नहीं भर  जाती है

बहुत सहे  इस  धरती ने, गद्दारों  के  नापाक  करम,
फिर भी  बेटे  राह  तकें, तो खुद  ही शरमा जाती है।

अब भी  शब्द  सहारा लें, और  इत्र  पुष्प  फब्बारा लें,
रास रचें इठला  इठला तो, कविता मुरझा ही जाती है।

अपनी माँ की मर्यादा हित, जो शस्त्र उठाने से कतराए,
ऐसे शांति  दूत  बगुलों की, आत्मा  भी  सड़  जाती है।

सफेद ध्वज का नकाब ओढ़े, कायर  नामर्द कपूतों को,
बहरे गूंगे  तटस्थ  बने, खुदगर्ज  अपाहिज  लोगों को,
कसम धरा के हर कण की, शोणित की हर एक बूंद की,
जनता  की भरी अदालत में, पहले  फाँसी दी जाती है।

जब छाती  का गर्म  लहू, माँ के  दर्दों से  वाकिफ हो,
तब शब्दों मे  अंगारें रच, कविता चिंगारी बन जाती है।

1 comment:

  1. जब छाती का गर्म लहू, माँ के दर्दों से वाकिफ हो,
    तब शब्दों मे अंगारें रच, कविता चिंगारी बन जाती है।
    atyant sarthak samsamyik kavita !

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