Friday, May 18, 2012

वो मरहम नहीं हैं Wo marham nahin hain


उन्हें भूल हम  भले ही न  पाएँ  मगर,
भूल जाने की कोशिश तो जी भर करेंगे।

वो हम पर इनायत  तो करते बहुत हैं,
पर मरहम नहीं हैं जख्म हरे ही करेंगे।

नहीं देखना उन्हे लाल नजरों से हमको,
मोहब्बत की लत है ख्वाब में ही मिलेंगे।

दो आँखें  बमुश्किल  डुबा ही  तो देंगी,
वो मदहोश दिल पर असर क्या करेंगे?

लबों की सुर्खियां, उनकी नजाकत, ढिठाई,
खुदा की कसम कहर क्या क्या गिरेंगे?

बेमौत मरना बेहतर है शायद क्योंकि,
हम उनके बिना बेजान सा ही जिएंगे।

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  2. सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

    ReplyDelete
  3. बहुत ही प्रभावी रचना .... आभार

    ReplyDelete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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