Wednesday, May 23, 2012

मोहब्बत का पिंजरा Mohabbat ka Pinjra


मोहब्बत का पिंजरा
वक्त बेवक्त  कुछ  लम्हें  छू जाते हैं,
जेहन में  एक चुभन  छोड़  जाते  हैं।

लोग  मासूमियत से  हँसकर यादों में,
ख्वाबों में खुद को दफन छोड़ जाते हैं।

नजाकत  हुस्न की हो  या  मौत की,
दोनों आह और फरियाद छोड़ जाते हैं।

ये मुमकिन है हकीकत हकीकत न रहे,
कल को बड़े बड़े लोग दम तोड़ जाते हैं।

मंजिलों का साथ  सबको नहीं मिलता,
कुछ को  राह के हमराज़ तोड़ जाते हैं।

निशान रह न जाए  जेहन में  कहीं भी,
अपनी मोहब्बत का पिंजरा तोड़ जाते हैं।

2 comments:

  1. आपकी पोस्ट 24/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा - 889:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  2. निशान रह न जाए जेहन में कहीं भी,
    अपनी मोहब्बत का पिंजरा तोड़ जाते हैं।
    वाह! बहुत खूब...

    ReplyDelete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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