अरे कुछ रंग
दुनिया के
बहुत बदरंग से क्यों हैं?
जीने के सहज मौके
उड़ने को उत्सुक पर
मानव के करुण धोखे
शाब्दिक चासनी से तर
अचानक चोट खाने पर
लोग फिर दंग से क्यों हैं?
धर्म और था मार दिया
मेरा सच खोला मार दिया
पैसे की भूख थी मार दिया
नफरत से सबको तार दिया
सात्विक शांति के
ध्वज
स्वेत बेरंग से
क्यों हैं?
बंजर सूखी बरसातों
में
आहों के चित्र
उभरते हैं
भूखी व्याकुल मानवता पर
सोने के कोड़े पड़ते हैं
वैभव की इस दुनिया में,
लोग रहते बेढंग से क्यों हैं?
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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --