मेरी माँ: श्रीमती सुनीति द्विवेदी |
मेरीं माँ अक्सर कहा करती हैं - कि कभी
किसी के आगे हाथ मत फैलाना, भिखारियों के आगे क्या हाथ फैलाना?
इन्सान से क्या माँगना,
वो तो खुद एक भिखारी है,
माँगो तो उससे माँगों,
जो सबका पालनहारी है।
और मुझे नहीं याद मुझे भगवान से भी कुछ मांगने की जरूरत पड़ी है, शायद मेरी जरूरतें ईश्वर ने स्वतः पूरी कीं हैं। मेरे रास्ते उस परमपिता ने स्वं निर्धारित किए और वो रास्ते वही रास्ते थे जो मैंने कभी चाहे थे। मुझे अपनी जिंदगी में सब कुछ नहीं मिला पर मुझे ये भी कभी नहीं लगा की जो मुझे नहीं मिला उसकी मुझे जरूरत पड़ी है।
मेरी माँ ये भी कहतीं हैं --
कर्म करते रहो और ऊपर वाले पर विश्वास रखो, यही जीवन है, यही करने हम सब यहाँ आए हैं। जीवन माया नहीं है, कर्मों
में रत रहना माया नहीं है, अपने दायित्व निभाना माया नहीं
है।
माया है मोह करना, माया है कुछ खोने पर दुःखी होना,
माया है कुछ पाने पर खुश होना, माया है
सुविधाभोगी होने कि चाह करना। माया है उन सबको अपना समझना जो कभी तुम्हारे नहीं
थे। जिन्हे तुम लेकर नहीं आए।
वैसे आज मैं सबको ये उपदेश क्यों दे रहा हूँ?
क्योंकि शायद आज इन्हीं सब बातों ने मेरी
जिंदगी का एक बड़ा निर्णय लेने में मेरी बहुत मदद की है,
और शायद ये बातें जाने अनजाने आपकी भी कोई मदद कर सकें।
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteहमारी ओर से -
बधाई स्वीकारें ||