ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
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मैं खता हूँ Main Khata Hun
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआभार ।।
बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteSaroj Kumar:
ReplyDeleteजी हाँ बेहतरीन रचना. मुझे अत्यंत प्रिय है यह गुनगुनाने लायक है. मैंने इससे सन्देश ग्रहण किया है.
Kusum Joshi:
ReplyDeletekavi-hriday hi kaanton ke manobhaaw ko padh saktaa hai ..uttam kriti ke liye aapkaa abhinandan hai Neeraj .
Archana Nayudu:
ReplyDeletegar hum jo shool naa hote ,to kya phulo ko bhavaro se bacha pate ..niraj ji uttam....
Kishore Nigam:
ReplyDeleteअपनी सार्वभौम उपयोगिता के बावजूद काँटों का उपेक्षित और शोषित होना, और उन्ही के द्वारा रक्षित और पोषित पुष्पों का देवों के मस्तक पर चढ़ना , संवेदन हीनता ही दर्शाता है. किन्तु दूसरा पक्ष यह भी है की शायद इसमें ही काँटों की खुसी होगी. जैसे माता पिता के द्वारा बच्चों को पालित पोषित करके , उन्हें सफलता की उच्छ्तम सीढ़ी पर पहुंचाने में माया पिता जी खुसी होती है . नए सन्दर्भों को देती अत्यंत भावुक रचना
Pulin Garg:
ReplyDeleteकाँटों का उत्तर:
फूल बने या शूल बने हम,
कर्मों का है ये सब फल,
पर, धर्म हमारा सदा एक सा,
होता है जो सदा सफल|
फूल बाँटें हैं खुशियाँ सब को,
हम भी वही करते हैं,
बस थोड़ा अंदाज़ अलग है,
हम, फूलों के लिये मरते हैं|
फूल अच्छाई को दिखाते,
हम बुराई को शोभा देते,
जीवन का सिद्धांत सिखाते,
फूल - डाल की रक्षा करते|
फूल, शूल है द्वंद्व का फेरा,
इक बिना दूजा है अधूरा,
जब फूलों का होता है गान,
शूलों की भेंट चदता है मौन|
"नीरज" तो एक स्वयं पुष्प है,
हमसे करता है वो प्रेम,
आभार हमारा व्यक्त तुम करना,
पर हमें पसंद है, अव्यक्त ही रहना|
पर हमें पसंद है, अव्यक्त ही रहना|