Friday, May 4, 2012

काँटों का जीवन: शोषित और उपेक्षित


7 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ।

    आभार ।।

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  2. बढ़िया प्रस्तुति!

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  3. Saroj Kumar:
    जी हाँ बेहतरीन रचना. मुझे अत्यंत प्रिय है यह गुनगुनाने लायक है. मैंने इससे सन्देश ग्रहण किया है.

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  4. Kusum Joshi:
    kavi-hriday hi kaanton ke manobhaaw ko padh saktaa hai ..uttam kriti ke liye aapkaa abhinandan hai Neeraj .

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  5. Archana Nayudu:
    gar hum jo shool naa hote ,to kya phulo ko bhavaro se bacha pate ..niraj ji uttam....

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  6. Kishore Nigam:
    अपनी सार्वभौम उपयोगिता के बावजूद काँटों का उपेक्षित और शोषित होना, और उन्ही के द्वारा रक्षित और पोषित पुष्पों का देवों के मस्तक पर चढ़ना , संवेदन हीनता ही दर्शाता है. किन्तु दूसरा पक्ष यह भी है की शायद इसमें ही काँटों की खुसी होगी. जैसे माता पिता के द्वारा बच्चों को पालित पोषित करके , उन्हें सफलता की उच्छ्तम सीढ़ी पर पहुंचाने में माया पिता जी खुसी होती है . नए सन्दर्भों को देती अत्यंत भावुक रचना

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  7. Pulin Garg:

    काँटों का उत्तर:

    फूल बने या शूल बने हम,
    कर्मों का है ये सब फल,
    पर, धर्म हमारा सदा एक सा,
    होता है जो सदा सफल|

    फूल बाँटें हैं खुशियाँ सब को,
    हम भी वही करते हैं,
    बस थोड़ा अंदाज़ अलग है,
    हम, फूलों के लिये मरते हैं|

    फूल अच्छाई को दिखाते,
    हम बुराई को शोभा देते,
    जीवन का सिद्धांत सिखाते,
    फूल - डाल की रक्षा करते|

    फूल, शूल है द्वंद्व का फेरा,
    इक बिना दूजा है अधूरा,
    जब फूलों का होता है गान,
    शूलों की भेंट चदता है मौन|

    "नीरज" तो एक स्वयं पुष्प है,
    हमसे करता है वो प्रेम,
    आभार हमारा व्यक्त तुम करना,
    पर हमें पसंद है, अव्यक्त ही रहना|
    पर हमें पसंद है, अव्यक्त ही रहना|

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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