ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
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मैं खता हूँ Main Khata Hun
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
बढ़िया प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबधाई ।।
Kiran Arya:
ReplyDeleteHar pal mar mar kar jeene ka kaise naam jindagi hai, jo ruk jaaye avrodho se usko dhara nai kaha karte.........waah bahut hi arthpurn abhivyakti.........
Saroj Kumar:
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत कविता. शब्द - भाव - अभिव्यंजना - कसावट ये सब काफी सुन्दर. भावनाएँ अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनायें रखने में सक्षम. यह इस रचना की खास खूबी है. ***कलम अधूरे अक्षर लिखकर कहाँ चैन से सोती हैं ****** यह बात आप कह पाए इसके लिए बधाई. *** हम सोने वालों ............. धरा नहीं कहा करते *** इन पंक्तियों ने तो कविता में जान डाल दी है. बहुत खूब.