"इनसे अच्छे तो जंगलों में शेर थे, मेरे मौला,
कम-से-कम वो हमें ख़रीद के ख़ाते तो न थे।"
"किया करते थे शिकार ज़ाहिर, वो पेट की ख़ातिर,
ख़ातिरे दौलत, कोई
रिश्ता वो निभाते तो न थे।"
"हमें दौड़ा के और थका के, वो फ़ाड़ते थे हमें,
'राज़'
बहला के क़त्लख़ाने पे वो लाते तो न थे।"
"जानवर थे तो जानवर की थी फ़ितरत उनकी,
नाम अपना कोई, इंसान
बताते तो न थे।"
"खुले थे चेहरे, शेर-भेड़ियों के 'राज़' जंगल में,
वहाँ शैतान ख़ुद को इंसाँ में छिपाते तो न थे।"
"वो सताते थे हमें बचपन से,बड़े ज़ालिम थे,
हमें वो पाल के मुहब्बत बढ़ाते तो न थे।"
"नहीं थी पाठशाला,न मदरसे थे वहाँ भाई,
कोई इंसानियत का पाठ वो पढ़ाते तो न थे।"
"वो था जंगल तो जंगलों का था क़ानून वहाँ,
हमें नहला के किसी वेदी पे वो चढ़ाते तो न थे।"
संजय शर्मा "राज़"
१२॰०१॰२०११
राज साहब मुखोटा संस्कृति पर डबल स्टेंडर्ड पर बढ़िया व्यंग्य किया है आपने .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर |
ReplyDeleteअलग हटके |
आभार |
राखा जंगल का सदा, जानवरों ने मान |
भंडारण करते नहीं, भूख लगे लें जान |
भूख लगे लें जान, नहीं थाना विद्यालय |
भरे पेट पर सदा, शरारत झगड़ा टालय |
सुन रे तिकड़म बाज, मिटा तू धरती खा-खा |
शीघ्र गिरेगी गाज, बचा तो हमने राखा |
३१.०३.२०१२
ReplyDelete"राखा दुनिया का सदा,आदमियों ने मान,
भंडारण कर थकते नहीं,भूख लगे लें जान।
भूख लगे लें जान,सबै थाना-विद्यालय,
रखो रोकड़ा,भरो जेब ये झगड़ा टालय।
सुन रे!संजय "राज़" बेच दे धरती खा-खा,
नहीं गिरेगी गाज,होगा जो राम रचि राखा।"
संजय "राज़"
राखा जंगल का सदा, हम पशुओं ने मान |
ReplyDeleteभंडारण करते नहीं, भूख लगे लें जान |
भूख लगे लें जान, बिना थाना विद्यालय |
भरे पेट अलसाय, शरारत झगड़ा टालय |
मानव शौक अजीब, स्वाद शोषण का चाखा |
संहारक हर नीति, बचा तो हमने राखा |
सही कहा है रा्ज जी, मानव दानव बन गया है.
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