Saturday, March 31, 2012

आदमी


"इनसे अच्छे तो जंगलों में शेर थे, मेरे मौला,
कम-से-कम वो हमें ख़रीद के ख़ाते तो न थे।"

"किया करते थे शिकार ज़ाहिर, वो पेट की ख़ातिर,
ख़ातिरे दौलत, कोई रिश्ता वो निभाते तो न थे।"

"हमें दौड़ा के और थका के, वो फ़ाड़ते थे हमें,
'राज़' बहला के क़त्लख़ाने पे वो लाते तो न थे।"

"जानवर थे तो जानवर की थी फ़ितरत उनकी,
नाम अपना कोई, इंसान बताते तो न थे।"

"खुले थे चेहरे, शेर-भेड़ियों के 'राज़' जंगल में,
वहाँ शैतान ख़ुद को इंसाँ में छिपाते तो न थे।"

"वो सताते थे हमें बचपन से,बड़े ज़ालिम थे,
हमें वो पाल के मुहब्बत बढ़ाते तो न थे।"

"नहीं थी पाठशाला,न मदरसे थे वहाँ भाई,
कोई इंसानियत का पाठ वो पढ़ाते तो न थे।"

"वो था जंगल तो जंगलों का था क़ानून वहाँ,
हमें नहला के किसी वेदी पे वो चढ़ाते तो न थे।"

संजय शर्मा "राज़"
१२॰०१॰२०११


5 comments:

  1. राज साहब मुखोटा संस्कृति पर डबल स्टेंडर्ड पर बढ़िया व्यंग्य किया है आपने .

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  2. बहुत सुन्दर |
    अलग हटके |
    आभार |

    राखा जंगल का सदा, जानवरों ने मान |
    भंडारण करते नहीं, भूख लगे लें जान |

    भूख लगे लें जान, नहीं थाना विद्यालय |
    भरे पेट पर सदा, शरारत झगड़ा टालय |

    सुन रे तिकड़म बाज, मिटा तू धरती खा-खा |
    शीघ्र गिरेगी गाज, बचा तो हमने राखा |

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  3. ३१.०३.२०१२

    "राखा दुनिया का सदा,आदमियों ने मान,
    भंडारण कर थकते नहीं,भूख लगे लें जान।

    भूख लगे लें जान,सबै थाना-विद्यालय,
    रखो रोकड़ा,भरो जेब ये झगड़ा टालय।

    सुन रे!संजय "राज़" बेच दे धरती खा-खा,
    नहीं गिरेगी गाज,होगा जो राम रचि राखा।"

    संजय "राज़"

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  4. राखा जंगल का सदा, हम पशुओं ने मान |
    भंडारण करते नहीं, भूख लगे लें जान |

    भूख लगे लें जान, बिना थाना विद्यालय |
    भरे पेट अलसाय, शरारत झगड़ा टालय |

    मानव शौक अजीब, स्वाद शोषण का चाखा |
    संहारक हर नीति, बचा तो हमने राखा |

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  5. सही कहा है रा्ज जी, मानव दानव बन गया है.

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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