Thursday, March 29, 2012

एक मुद्दत


2 comments:

  1. कवि की संवेदनशीलता ही है कि तेज़ होती हवाओं का
    बादल उड़ा कर आशाओं पर पानी फेर देना और मनमानी हुकूमत के आगे लेखनी का कुंठित हो जाना . दोनो जीवन से सच कटु सत्य ,समभाव से निरूपित कर सका ! प्रशंसा नहीं कर रही ,कवि के कौशल को मान दे रही हूँ !

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया प्रतिभा जी, प्रणाम
      आप अक्सर इस ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साहवर्धन करतीं हैं, इसके लिए हृदयतल से बहुत बहुत आभार।

      Delete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

Featured Post

मैं खता हूँ Main Khata Hun

मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ   इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...