ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
Monday, February 27, 2012
गरज सहती हवाएँ हैं
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गरज सहती हवाएँ हैं
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मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...

bhau umda bhaav rachna me.
ReplyDeleteसुन्दर ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
bhaut bhaavpurn aur sundar rachna.....
ReplyDeleteइस उम्दा रचना को पढ़वाने के लिए आभार!
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