ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
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मैं खता हूँ Main Khata Hun
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
bhau umda bhaav rachna me.
ReplyDeleteसुन्दर ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
bhaut bhaavpurn aur sundar rachna.....
ReplyDeleteइस उम्दा रचना को पढ़वाने के लिए आभार!
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