Thursday, February 23, 2012

उस दिन मैंने मोती चखे


Image from google with thanks

वो दिन,
वो बरसती छत,
फिसलन भरा आँगन,
वो टूटी मुंडेर,
कडक सर्दी के दिन,
कोनों में घुसे,
बैठे परिवारी जन,
गिरते सफ़ेद मोती,
बार बार छन छन।

आकर्षित करते,
छूने को लालायित मन,
मैं कभी देखता उनकी ओर,
पाने की लालसा में,
कभी देखता माँ की ओर,
कहीं डांट न पड़ जाए,
तभी मैंने पाया माँ का ध्यान किसी ओर,
उठा चुपके से जल्दी से,
पाने को मोती का छोर।

उठाया उंगलियों में,
धोया बरसते पानी में,
और न जाने क्यों रख लिया मुँह में,
और वो एक ठंडी आह के बाद मोती गुम,
न जाने कहाँ चला गया,
मैं उसके स्वादहीन स्वाद में गुम,
ठगा सा रह गया।

2 comments:

  1. olon ko moti ka roop bahut bhaya ek chitra sa aamkho ke samne aa gaya kyunki sabhi ke jeevan me yeh kshan aata hai.bahut sundar likha hai.

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  2. मोती बरसते हैं गगन से, कविता झरती है कलम से, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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