अब वक्त हिदायत देता है,
और जाग उठी तरुणाई है,
ओ देश धर्म के ठेकेदारों,
हमने अब अलख जगाई है।
बहुत सुनाया लोगों को अब,
सुनो कलम के बुद्धि प्रवर,
रास बहुत रच गया था कान्हा,
तुम रचो क्रांति का महासमर।
सड़कों पर सड़ते बचपन के,
तुम आँसू देख नहीं सकते,
और बिलखती भारत माँ का,
का क्रंदन देख नहीं सकते।
इसी धरा के कलम पुत्र हो,
रचो कलम से एक भंवर,
जीवित हो मानवता फिर से,
अब रचो क्रांति का महासमर।
बहुत सुनाया लोगों को अब,
ReplyDeleteसुनो कलम के बुद्धि प्रवर,
रास बहुत रच गया था कान्हा,
तुम रचो क्रांति का महासमर।....
एक नयी सोच का वाहक बनता सृजन व उद्दगार आने वाले समय की भावना को संप्रेषित करता प्रशंशनीय है बधाईयाँ जी /
सड़कों पर सड़ते बचपन के,
ReplyDeleteतुम आँसू देख नहीं सकते,
और बिलखती भारत माँ का,
का क्रंदन देख नहीं सकते।
उचित कहा आपने नीरज जी.. आज कुछ ऐसा ही हो रहा है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
कल शाम से नेट की समस्या से जूझ रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। अब नेट चला है तो आपके ब्लॉग पर पहुँचा हूँ!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
्बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसी धरा के कलम पुत्र हो,
ReplyDeleteरचो कलम से एक भंवर,
जीवित हो मानवता फिर से,
अब रचो क्रांति का महासमर।
बहुत सुन्दर...
kuch to baat hai ....
ReplyDeletejo khinch kar tumhare aur ..... hume le aati hai ...
har baat/shabd k gaharaaaai kaisse bhala tumhe hamari chukar dil se jaati hai..
nice @ all .. :)