My Diary and Pen - Neeraj Dwivedi |
व्यर्थ चलाना कलम रात भर,
अब व्यर्थ जताना अपने भाव,
लोग व्यस्त हैं क्षुधा पूर्ति में,
लेकर अपनी अपनी नाव।
पढ़ कर थोड़ा खुश होते हैं,
कुछ पल को चिंतित होते हैं,
फिर लाइक का बटन दबा,
कर्तव्य पूर्ण समझ सो लेते हैं।
मैं कोई तुमसे अलग नहीं,
मैं भी कायर हूँ डरता हूँ,
देश की सर्द अंधेरी रातों में,
बस छिप छिप पन्ने भरता हूँ।
क्रांति क्रांति बस कह देना,
कोई क्रांति नहीं ले आता है,
युवा विचारों पर पश्चिम की,
बस जंग जरा पिघलाता है।
मैं ढूंढ रहा हूँ बिना रक्त के,
देश जगाने बाली भाषा,
मन किंचित चिंतित है लेकर,
अपने शब्दों की परिभाषा।
शब्द ब्रह्म है मालुम है,
इसलिए सहारा लेता हूँ,
कहीं डूब न जाए रक्तपात
में देश किनारा लेता हूँ।
मैं नहीं चाहता गिर जाए,
ये देश और अँधियारों में,
सो जाति धर्म के नाम बिना,
बस माँ का सहारा लेता हूँ।
इसलिए किनारा लेता हूँ।
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ReplyDeleteराष्ट्रवादी चेतना के प्रसार में सहयोगी बनिए
आपका स्वप्न पूरा हो जायेगा
सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteरटते रहो विचारों को संकल्प यही बन जाएगा.
ReplyDeleteआज नहीं तो कल हीं प्यारे क्रांति यही बन जाएगा.
------------- यह थी आलोचना.
सच्ची बात तो यह है कि अभी आपको प्रशंसा की जरूरत है. कुछ थरथराहट है लेकिन निरंतरता इसे दूर कर देगी. कुछ विचार तो मैंने किया है आपकी इस कविता पर. क्रांति क्रांति बस कह देना,कोई क्रांति नहीं ले आता है, कविता का केन्द्रीय भाव है. भाव की सघनता विचारों के मंथन से आती है. कुछ भी हो इस कविता ने मुझे रोका कुछ देर तक अपने पास. अच्छी लगी.
आप के पास काव्यलेखन की अच्छी क्षमता है,लेकिन अभी वैचारिक धरातल पर काफी कुछ सीखना है . काव्य मे वैचारिक स्वतंत्रता और सघनता की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि गागर मे सागर भरते हुए ,अपनी मौलिकता को बरकरार रखते हुए लिखना होता है
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