Wednesday, February 8, 2012

अश्रु भरे पन्नों में

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मैं  कह  लेता  हूँ  पन्नों  में,
मन में जो आता दुनिया से,
शब्दों में  भरता  हूँ  उनको,
जो बह न सके हैं अँखियों से।

बारिश  की  बूँदें  कभी नहीं,
नमकीन  जरा  भी  होती हैं,
दुनिया  के आंसू भर आँचल,
सागर   को   देती  रहती  हैं।

हम अपने  अँसुओं का कोई,
मोल    नहीं     होने    देंगें,
हम ब्रह्म  बनायेंगे  रचकर,
बस  शब्द  इन्हें   होने देंगे।

व्यर्थ  लुटाना  मोती अपने,
सिसकी - आहें   भरने  को,
इन्हें चुनों और बुनों वाक्य में,
पूरा  जग  अपना करने को।

व्यथित और बिचलित है मन,
अब क्या  उपदेश सुनाएं हम,
पार्थ  व्यर्थ  बनना जीवन में,
समय  कर्ण  बन  जायें हम।

अब न फिर इन्हें  लुटाएँ हम
ये समय  कर्ण बन जाए हम।

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