Sunday, February 5, 2012

नव भारत की परिभाषा


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लिखना कोई शौक न है मेरा,
ये तो बस इक अभिलाषा है,
इस माँ के चरणों में अर्पित,
मेरे भावों की भाषा है।

कुछ चिंतित सी सकुचाई सी,
भारत की ये तरुणाई है,
कदम उठे कहीं ठिठक गए,
कुछ शब्दों ने आग लगाई है।

स्वप्न बड़ा देखा करते हैं,
कोई चोट न इसने खाई है,
जाग रहे हैं धीरे धीरे,
कृष्ण ने दुंदुभी बजाई है।

धैर्य धरण का समय नहीं,
ये समय नहीं सकुचाने का,
पर गलियों में पोषित गर्द भरे,
भारत को अपनाने का।

कुछ भाव बुने हैं शब्दों ने,
भारत समझेगा, आशा है,
फिर से पूजित हो देश मेरा,
बस इतनी सी अभिलाषा है।

नहीं चाहिए ओलंपिक के,
पदक और सम्मान बहुत,
आरक्षण की जरूरत न हो,
ऐसी इक छोटी आशा है।

बस पेट भरे हर जीवन का,
मानव हो या फिर पशु तन हो,
फिर से सुकून की बंशी हो,
मेरी ये ललित पिपासा है।

मेरे शब्दों से रची बुनी,
नव भारत की परिभाषा है,
बस शब्द चुने हैं भावों ने,
भारत समझेगा, आशा है।
जय हिन्द.

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति!

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  2. गहन अभिवयक्ति..........और सार्थक पोस्ट.....

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  3. bahut sundar Neeraj ji

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  4. मेरे शब्दों से रची बुनी,

    नव भारत की परिभाषा है,

    बस शब्द चुने हैं भावों ने,

    भारत समझेगा, आशा है।
    नहीं शब्द क्या लिखूं

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  5. जी हाँ, सराहनीय कविता, आपकी भावनाओं से मैं भी जुड़ा हूँ.

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