तलाश
वक्त की तलाश,
उमड़ते घुमड़ते सजल बादलों के संग,
चहुँ ओर बिखरा उज्जवल भगवा रंग,
भानु की अनुपम छटा बिखरी गगन में,
या नवक्रांति की पताका फहरती पवन में,
दूर से अविराम आती पाँञ्चजन्य ध्वनि,
अधूरी नींद से जगकर तत्पर कर्ममुनि,
मैं आज निकला हूँ किसी की तलाश में,
काश मिल जाये फिर से कोई क्रांतिवीर,
भविष्य के स्वर्णिम वक्त के लिबास में
मैं आज फिर निकला हूँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteलाजवाब.
Depth in the language... Happy New Year Dear:)
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग का कलेवर देख कर तो ठिठक गया मैं ..बेहतरीन है जी बेहतरीन । बहुत ही सुंदर रचना । टैम्पलेट ने प्रभावित कर दिया मुझे ।
ReplyDeleteकाश मिल जाये फिर से कोई क्रांतिवीर,
ReplyDeleteभविष्य के स्वर्णिम वक्त के लिबास में
मैं आज फिर निकला हूँ।
...kabhi n kabhi jarur koi to aayega..yahi vishwas hai...
badiya sakaratak prastuti