हाँ खामोशियों का दौर है, पर हम खामोश रहें कैसे?
जख्म हो माँ के सीने में, तो हम बेहोश रहें कैसे?
इस अधूरे वक्त की कतरनें, अब चुभ रहीं हर पोर में,
ये पन्ने लेखनी राह तके, और हम मदहोश रहें कैसे?
हाँ खामोशियों का दौर है, चुपचाप है ये आसमां भी,
धरा भी खामोश रह अपना दर्द कहे तो कहे
कैसे?
देश का कण कण कराहे, यौवन आशिक़ी के गीत गाए,
हम कलम के ठेकेदार, अब भी चुप रहें तो रहें
कैसे?
excellent....
ReplyDeleteआप कहाँ चुप हैं...कह रहे और अच्छी तरह कह रहे हैं...
good going...
देश का कण कण कराहे, यौवन आशिक़ी के गीत गाए,
ReplyDeleteहम कलम के ठेकेदार, अब भी चुप रहें तो रहें कैसे?
बहुत खूब !आपकी लेखनी की प्रतिबद्धता को सलाम.
बेहतरीन भाव ...
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