ये इश्क है मेरा कोई तमाशा नहीं है,
दर्द है मेरा पानी का बताशा नहीं है।
वक्त की तपिश का अंजाम मालूम है,
मेरे प्यार का अब ये जनाजा नहीं है।
मालूम है गहराइयाँ उनके भी हद की,
अब खुद को डुबोने का कायदा नहीं है।
बह चले जो लहरों में मिलते हैं अक्सर,
अब मेरा उनसे मिलने का इरादा नहीं है।
दर्द और नफरत की हद से हूँ वाकिफ,
ये दोनों मिले हैं मुझे मैंने खरीदा नहीं है।
लाख कमियाँ दिखें ज़माने को हम में,
जिद्दी हैं खुद को अब तक बदला नहीं है।
very nice....khud ko na badalne ki zidd achhi hai..
ReplyDeleteThank you Vidya Ji ..
ReplyDeleteumdaa.....
ReplyDeletekhud ko badlna aasan nahi..badlav waqt se aata hai
बह चले जो लहरों में मिलते हैं अक्सर,
ReplyDeleteअब मेरा उनसे मिलने का इरादा नहीं है।...waah
बहुत खूब ||
ReplyDeleteआभार ||
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....
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