Saturday, November 26, 2011

जिद्दी हैं खुद को अब तक बदला नहीं है



ये इश्क है मेरा कोई तमाशा नहीं है,
दर्द है मेरा पानी का बताशा नहीं है

वक्त की तपिश का अंजाम मालूम है,
मेरे प्यार का अब ये जनाजा नहीं है

मालूम है गहराइयाँ उनके भी हद की,
अब खुद को डुबोने का कायदा नहीं है

बह चले जो लहरों में मिलते हैं अक्सर,
अब मेरा उनसे मिलने का इरादा नहीं है

दर्द और नफरत की हद से हूँ वाकिफ,
ये दोनों मिले हैं मुझे मैंने खरीदा नहीं है

लाख कमियाँ दिखें ज़माने को हम में,
जिद्दी हैं खुद को अब तक बदला नहीं है

7 comments:

  1. very nice....khud ko na badalne ki zidd achhi hai..

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  2. umdaa.....

    khud ko badlna aasan nahi..badlav waqt se aata hai

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  3. बह चले जो लहरों में मिलते हैं अक्सर,
    अब मेरा उनसे मिलने का इरादा नहीं है।...waah

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  4. बहुत खूब ||


    आभार ||

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  5. बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...

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  6. बेहतरीन शब्द समायोजन..... भावपूर्ण अभिवयक्ति....

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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