Wednesday, November 2, 2011

एक साधक


आज कोई साधक है मगन,
शायद बन रही है एक धुन।

खुद में मस्त है, अनजान है,
रचता काव्य का अभियान है,
मेरा झट से जा पहुँचा है मन,
उसके साथ है अविचल लगन॥

साथ ही दिखता बडा सानन्द है,
शायद सृष्टि का आनन्द है,
स्थान सुन्दर पर है निर्जन,
न जाने हो रहा है किसका वर्णन?

चाहता है शान्ति का सन्देश देना,
या नयी क्रान्ति का उद्घोष करना,
प्रेम से कविता का करता सृजन,
काव्य का सृंगार करता शान्त मन॥

आज कोई साधक है मगन,
शायद बन रही है एक धुन।

4 comments:

  1. आज कोई साधक है मगन,
    शायद बन रही है एक धुन। बहुत खूब....

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  2. बहुत सुन्दर....दाद कबूल कीजिये.

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  3. वाह ! मग्न होकर ही सहज गीत फूट पड़ता है...बधाई!

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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