ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
very nice....
ReplyDeleteu write good :)
ReplyDeleteaaj ke bharat ki dash ka varnan kiya hai aapne shayad,,,,,
ReplyDeletehar baat kah di
jai hind jai barat
katu stya....aaj ka nanga sach.....bahut khub
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सुन्दर.....
ReplyDeleteजीवन के यथार्थ का चित्रण करती सशक्त रचना !
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना....
ReplyDeleteसादर आभार....