मैं इक नया इतिहास लिखना चाहता हूँ,
सत्य का कर्णभेदी उद्घोष करना चाहता हूँ,
असत्य के इस अथाह सागर के सम्पूर्ण,
पान हित नया अगस्त्य बनना चाहता हूँ॥
अगणित निर्दोषों की करुण पुकारें सुन,
मिथ्या गर्व की चिरपरिचित हुंकारें सुन,
निराशा की अपरिमित चीत्कारों के मध्य,
विश्व का सबसे सुरीला गान बनना चाहता हूँ॥
सतत नफरत की जीर्ण शीर्ण दीवारों पर,
क्षमा की घातक चोट करना चाहता हूँ,
हिंसा के इस ज्वलंत संग्राम के मध्य,
प्रेम का सात्विक अभियान बनना चाहता हूँ॥
भारत माँ के खंडित भाग्य की कराहें सुन,
स्वयं को काट माँ के घाव भरना चाहता हूँ,
राष्ट्र में व्याप्त अनैतिक शीत रात्रि के मध्य,
सूर्य बन देश का अभिमान बनना चाहता हूँ॥
मैं, माँ तेरा सम्मान बनना चाहता हूँ,
हे धरा, मैं तेरा अभिमान बनना चाहता हूँ।
Sundar vichar.
ReplyDeleteIn vicharon ke sath iswar ka aashirwad jaroor milega.
Badhai.
khubsurat abhivaykti...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना नीरज जी ..बधाई!
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई इस प्रेरणात्मक गीत के लिये, आज भारत माँ को आप जैसे कवियों की बहुत जरूरत है...
ReplyDeleteprerna mili hai ise padhkar,
ReplyDeletebahut hi prerna dayak rachna
jai hind jai bharat
bahut sundar bhaav bhare hain .
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