बहुत सह लिया ये प्रपंच,
इन गद्दारों के सजते मंच।
न्यायालय धोखा देते हैं,
घूसखोर हैं अब सरपंच॥
धरती के सीने में दर्द बहुत,
अब बनी प्रलयंकारी है।
आँखों में भरी है आग बहुत,
विश्वविजय की तैयारी है॥
राजा चोर बना बैठा है,
संरक्षक शायद कातिल है।
जाम्बंत की खोज पड़ी है,
भूला केसरी अपना बल है॥
गंगा भी अब तो रूठ गयी,
बापस जाने को बेचारी है।
पलकों में बसी है पीर बहुत,
बरखा के आने की बारी है॥
bahut badhiya likha hai apne...
ReplyDeleteu r invited to join my blog
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जाम्बंत की खोज पड़ी है,
ReplyDeleteभूला केसरी अपना बल है॥
badhai||
राजा चोर बना बैठा है
ReplyDeleteसाक्षक शाद कातिल है वाह बढ़िया प्रस्तुति समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागता है
behad hi umda rachna...
ReplyDeleteek din keshri ko bhi apne bal ka gya jaroor hoga...
jai hind jai bharat
sundar...
ReplyDeletegood one...
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