Saturday, October 15, 2011

कातिल संरक्षक


बहुत सह लिया ये प्रपंच,
इन गद्दारों के सजते मंच।
न्यायालय धोखा देते हैं,
घूसखोर हैं अब सरपंच॥

धरती के सीने में दर्द बहुत,
अब बनी प्रलयंकारी है।
आँखों में भरी है आग बहुत,
विश्वविजय की तैयारी है॥

राजा चोर बना बैठा है,
संरक्षक शायद कातिल है।
जाम्बंत की खोज पड़ी है,
भूला केसरी अपना बल है॥

गंगा भी अब तो रूठ गयी,
बापस जाने को बेचारी है।
पलकों में बसी है पीर बहुत,
बरखा के आने की बारी है॥

6 comments:

  1. bahut badhiya likha hai apne...
    u r invited to join my blog
    http//www.mknilu.blogspot.com

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  2. जाम्बंत की खोज पड़ी है,
    भूला केसरी अपना बल है॥

    badhai||

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  3. राजा चोर बना बैठा है
    साक्षक शाद कातिल है वाह बढ़िया प्रस्तुति समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागता है

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  4. behad hi umda rachna...
    ek din keshri ko bhi apne bal ka gya jaroor hoga...
    jai hind jai bharat

    ReplyDelete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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