सहस्र दीपों को देख लगे,
तारे अम्बर से उतरे हैं,
बहुत दिन रहे दूर हमसे,
यूँ धरा पे आके बिखरे हैं॥
तम को हटाने की कोशिश,
इन जग मग रोशनियों में,
हर्ष, उमंग, आह्लाद लगे इन,
फुलझड़ियों की सरपट ध्वनि में॥
शायद टूट गया है सूरज वो,
इन छोटे छोटे टुकड़ों में,
धरती पर आकर बिखर गया,
ये समझ, कि है अपने घर में॥
गर बात करो फुलझड़ियों की,
खुशियाँ बच्चों की हैं इनमें,
जीवन का आह्लाद भरा है,
इन अनार की ध्वनियों में॥
दीपक की अब बात करो ना,
पहुँचोगे ना तह तक इसमें,
चाहे जितने ग्रन्थ रचो तुम,
दीपक एक काव्य है खुद में॥
दीपक की लड़ियाँ हों सुशोभित,
जब घर के कोने आंगन में,
तम अज्ञान का फैलाना भी,
अंधेरों की कहाँ है बस में?
जीवन का उल्लास समाहित,
देखो अब इस दीप पर्व में,
दीपक ही आदर्श हो अपने,
तन में, मन में, जीवन में॥
बहुत बधाई दीप पर्व की,
सबको सबके जीवन में,
रहे कृपादृष्टि ईश्वर की,
प्रकृति रहे बस यौवन में॥
दीवाली से पहले दीवाली मना ली आपने, बहुत बहुत शुभकामनायें!
ReplyDeletevery nice and festive poem...best wishes neeraj ji.
ReplyDeleteप्रशंशनीय पंक्तियों की आलोचना कैसे हो ?
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