तू अगर खड़ी हो सम्मुख तो,
दिल की दुर्घटना जायज है,
आँखों की बात करूँ कैसे?
इनका ना हटना जायज है॥
स्वप्नों में उड़ना जायज है,
चाँद पकड़ना जायज है,
गर तुम हो साथ मेरे तो,
दुनिया से लड़ना जायज है॥
किसी और से आँख लड़े कैसे?
ये सब तो अब नाजायज है
तू हो मेरे आलिंगन में तो,
धरती का फटना जायज है॥
चाहें लाख बरसतें हो बादल,
उनका चिल्लाना जायज है,
गर तेरा सर हो मेरे सीने पर,
बिजली का गिरना जायज है॥
अचूक हलाहल हो सम्मुख,
मेरा पी जाना जायज है,
इक आह हो तेरे होंठों पर,
तो मेरा डर जाना जायज है॥
स्रष्टि का क्रंदन जायज है,
हिमाद्रि बिखंडन जायज है,
मेरे होंठो पर हों होंठ तेरे,
तो धरा का कम्पन जायज है॥
तू हो तीर खड़ी नदिया के,
उसका रुक जाना जायज है,
बस तेरे लिए हे प्राणप्रिये,
मेरा मिट जाना जायज है॥
I like it as it has some old world hindi poetry charm...Sorry, can't find anything bad in the expression...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteआलोचना कभी और सही..."लिखा है जब इतना सुन्दर तो
ReplyDeleteप्रशंसा करना जायज़ है..."
बहुत खूब.....
सब जायज है तो आलोचना किस चीज की, की जाये? आप ही बतायें?
ReplyDeleteअरे राजे जी, ये तो आपका बड़प्पन और आपका प्यार है. नहीं तो मैं हूँ ही क्या?
ReplyDeleteआभार सुषमा जी, सारु जी और विद्या जी.
kya prem purn abhivyakti hai bhai.....dilkash.....:)
ReplyDeletebahut ache sir ji,prem se bhari hui pyali le kar aapne ye kavita likhi hai ..:)
ReplyDeleteजैसा कि आप कहते है प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है । अगर कुछ आलोचना लायक हो तो ही ना । आदरणीय नीरज जी आप ने लिख ही इतना प्रशसंनीय है कि मात्र तारीफ के हम और कुछ सोच ही नहीं सकते । भविष्य में अपना प्यार ऐसे ही हम तक पहुँचाते रहे । अग्रिम धन्यवाद सहित । एल आर कपूर
ReplyDeleteबहुत आभार नवीन जी, गौरव भाई, moonstar जी.
ReplyDeletekudh ka mit jana jayaj nahi
ReplyDeleteइतनी उम्दा रचना को पढ़ कर निशब्द हो जाना भी जायज है|.................
ReplyDeleteसचमुच बहुत हही सुंदर कविता है नीरज जी....
मेरे ओंठों पर ओंठ तेरे तो धरा कम्पन जायज है.............
तू हो मेरे आलिंगन में जो तो धरती का फटना जायज़ है......................
कितनी लाइन्स कोट करूँ भाई.......मज़ा आ गया