नौका को सागर की लहरों पर
पति और पत्नी के झगड़ों पर,
एहसास प्यार का होता है,
गऊयों को अपने बछड़ों पर॥
हिन्दू मुस्लिम के दंगों पर,
भाई भाई के झगड़ों पर,
एहसास दर्द का होता है,
धरती को अपने टुकड़ों पर॥
पेड़ों पर चढ़ती बेलों पर,
उन पर इठलातीं कलियों पर,
एहसास प्यार का होता है,
मिटटी को जौं की फलियों पर॥
नदिया के दोनों छोरों पर,
आँखों के दोनों कोरों पर,
एहसास दर्द का होता है,
अब तेरे बिना बिछौनों पर॥
उस रब के सारे बन्दों पर,
इस दुनिया के सब धंधो पर,
आश्चर्य बहुत ही होता है,
अब जीवन के इन छंदों पर॥
अब कोई ज़बरदस्ती है क्या...हमें तो बहुत प्रशंसा करने का दिल चाह रहा है...बहुत खूबसूरत रचना ,बधाई !!!!
ReplyDeleteबहुत आभार आपका विद्या जी ... आपसे आलोचना की हमेशा अपेक्षा रहेगी, प्रशंसा तो कोई भी कर सकता है.
ReplyDeleteI am thankful to Suresh Chaudhary Ji for correcting me.
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteThank you Sushma Ji.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ...
ReplyDeleteखूबसूरत अभिवयक्ति
ReplyDeleteकभी समय मिले तो आएगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बेहतरीन!!
ReplyDeleteThank you ... All Thank you So much,
ReplyDeletesundar bhaavabhivaykti....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ,बधाई !
ReplyDeleteएहसास प्यार का होता है,
ReplyDeleteमिटटी को जौं की फलियों पर॥
सुंदर रचना