Wednesday, September 14, 2011

जीवन के छंद


नौका को सागर की लहरों पर
पति और पत्नी के झगड़ों पर,
एहसास प्यार का होता है,
गऊयों को अपने बछड़ों पर॥

हिन्दू मुस्लिम के दंगों पर,
भाई भाई के झगड़ों पर,
एहसास दर्द का होता है,
धरती को अपने टुकड़ों पर॥

पेड़ों पर चढ़ती बेलों पर,
उन पर इठलातीं कलियों पर,
एहसास प्यार का होता है,
मिटटी को जौं की फलियों पर॥

नदिया के दोनों छोरों पर,
आँखों के दोनों कोरों पर,
एहसास दर्द का होता है,
अब तेरे बिना बिछौनों पर॥

उस रब के सारे बन्दों पर,
इस दुनिया के सब धंधो पर,
आश्चर्य बहुत ही होता है,
अब जीवन के इन छंदों पर॥

12 comments:

  1. अब कोई ज़बरदस्ती है क्या...हमें तो बहुत प्रशंसा करने का दिल चाह रहा है...बहुत खूबसूरत रचना ,बधाई !!!!

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  2. बहुत आभार आपका विद्या जी ... आपसे आलोचना की हमेशा अपेक्षा रहेगी, प्रशंसा तो कोई भी कर सकता है.

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  3. I am thankful to Suresh Chaudhary Ji for correcting me.

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  4. बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  5. बहुत खुबसूरत ...

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  6. खूबसूरत अभिवयक्ति
    कभी समय मिले तो आएगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  7. बहुत खूबसूरत रचना ,बधाई !

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  8. एहसास प्यार का होता है,

    मिटटी को जौं की फलियों पर॥
    सुंदर रचना

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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