Thursday, September 1, 2011

कैद में इश्क या इश्क में कैद

 अब इश्क के तकाजे करने नहीं पड़ते,
ये प्रेम के दो लफ्ज सीखने नहीं पड़ते,
हम पखेरू हैं, पैदाइश इसी जमीं की,
जहाँ प्यार के बीज बोने नहीं पड़ते॥

ये कैद भी स्वर्ग से कम नहीं अब तो,
आशिक हो साथ गर मुस्कुराने के लिए,
क्योंकि इक कोना ही बहुत है अब तो,
हमें अपने रूहेदिल मिलाने के लिए॥

4 comments:

  1. भाव और अर्थ सौन्दर्य लिए हैं अशआर आपके .बधाई !कहतें हैं आपको वीरुभाई !
    शुक्रवार, २ सितम्बर २०११
    खिश्यानी सरकार फ़ाइल निकाले ...
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब

    ReplyDelete
  3. पैदाइश सही शब्द है... कृपया सुधार लें, सुंदर रचना !

    ReplyDelete
  4. जी बिल्कुल, बहुत आभार आपका

    ReplyDelete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

Featured Post

मैं खता हूँ Main Khata Hun

मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ   इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...