ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
भाव और अर्थ सौन्दर्य लिए हैं अशआर आपके .बधाई !कहतें हैं आपको वीरुभाई !
ReplyDeleteशुक्रवार, २ सितम्बर २०११
खिश्यानी सरकार फ़ाइल निकाले ...
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बहुत खूब
ReplyDeleteपैदाइश सही शब्द है... कृपया सुधार लें, सुंदर रचना !
ReplyDeleteजी बिल्कुल, बहुत आभार आपका
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