ये इस बार स्वतंत्रता दिवस(15 अगस्त 2011) पर खुशी नही हो रही है, शायद इसलिये कि मेरी आँखे जो खुल गयीं हैं, आज़ादी कहीं दिखाई जो नही दे रही है। ना सच बोलने की आज़ादी, न सच लिखने की आज़ादी और ना ही सच देखने की आज़ादी, यहाँ तक कि अब तो भूखे रहने की आज़ादी भी छीन ली गयी है।
स्वतंत्रता और स्वतंत्र व्यक्ति तो कोई नही दिख रहा, दिख रहा है तो गुलामी और गुलामी के नये नये आकर्षक रूप, चाहे वो नेताओं की गुलामी हो, विचारधारा की गुलामी हो या विदेशी कम्पनियों की।
आज तो हर हिन्दुस्तानी देशभक्त हो गया है, और सारी की सारी देशभक्ति मोबाईल सन्देशों और फ़िल्मी गाने सुनने में ही लगी जा रही है। कहीं लोग झन्डे लिये बैठे हैं तो कहीं बस बडी बडी बातें करने में ही खुद को देशभक्त साबित करने में जुटे पडे हैं। सही है, जरूरी भी है, क्योंकि कल से फ़िर सबको ये सब बातें भूल कर, अपने पेट भरने की फ़िक्र में लगना पडेगा।
और ये देशभक्ति के फ़िल्मी गीत, आज जो हर कहीं सुनने को मिल रहे हैं जो साल में केवल दो दिन छोड किसी दिन पूछे भी नही जाते। किसी ने सच ही कहा है कि भारत में दो दिन ऐसे भी होते हैं जिस दिन भारत का हर एक व्यक्ति देशभक्त होता है।
सीमओं पर रोज रोज मरने वाले उस सैनिक को और कभी न याद करने वाला इस देश का नागरिक पता नही किसे दिखाने के लिये आज ही सबको याद करने की कोशिश करता हुया दिखता है। मैं उस मजदूर या किसान की बात नही कर रहा जो दिन भर अपना पेट भरने की जद्दोजेहद में लगा रहता है, मैं बात कर रहा हूँ उस मध्यम और उच्च वर्ग की जो शायद देश के लिये कुछ वक्त तो निकाल ही सकता है, फ़िर भी इन दो दिनो के अतिरिक्त कभी नही सोचता देश के बारे में। इन दो दिनों में भी जब दोपहर बाद सोकर उठता है तब उसे देश और बन्दे मातरम गीत याद आता है। और घन्टे दो घन्टे में लगतार सुनकर जब बोर हो जाता है तो बन्द कर फ़िर उन गानों को अगले स्वतन्त्रता दिवस या गणतन्त्र दिवस के लिये बचाकर रख देता है और व्यस्त हो जाता है अपनी खुदगर्जी में।
ये वही व्यक्ति है जो कभी कभी तो देश के लिये खडा होने की कोशिश करता है और फ़िर देशद्रोहियों(जैसे कुछ देश द्रोही नेता) की बातों में आकर, उन लोगो के लिये जो इस देश के लोगो के लिये लडने की हिम्मत कर रहे होते हैं, उन्ही को आपसी वार्तालाप में वही रोजमर्रा की प्रचलित गालियों के साथ सम्बोधित कर गर्व का अनुभव करता है।
वाह रे भारत भूमि कैसे कैसे पुत्र हैं तेरे जो तेरा ही दर्द हँसी में उडा देते हैं।
दर्द से उपजी है यह पोस्ट... सही कहा है, लेकिन मायूस होने से तो काम नहीं चलेगा... हमें और आपको ही मिल कर देश को आगे ले जाना है...
ReplyDeleteनमस्कार....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
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