ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
nice one
ReplyDeleteहोंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
ReplyDeleteकोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
bahut khoob likha hai neeraj bhai :)
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किसी और की हो नहीं पाएगी वो ||
धन्यबाद मनीष भाई
ReplyDeleteआपका लिखने का अंदाज़ बड़ा सुरीला |
ReplyDeleteआपने इस लिखने में अपने दिल को उडेला है |
Abhar Pappu ji ..
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